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समि॑द्धोऽअ॒ग्निः स॒मिधा॒ सुस॑मिद्धो॒ वरे॑ण्यः। गा॒य॒त्री छन्द॑ऽइन्द्रि॒यं त्र्यवि॒र्गौर्वयो॑ दधुः ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

समि॑द्ध॒ऽइति॒ सम्ऽइ॑द्धः। अग्निः। स॒मिधेति॑ स॒म्ऽइधा॑। सुस॑मिद्ध॒ इति॒ सुऽस॑मिद्धः। वरे॑ण्यः। गा॒य॒त्री। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। त्र्यवि॒रिति॒ त्रिऽअ॑विः। गौः। वयः॑। द॒धुः॒ ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् के विषय में अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (समिद्धः) अच्छे प्रकार देदीप्यमान (अग्निः) अग्नि (समिधा) उत्तम प्रकाश से (सुसमिद्धः) बहुत प्रकाशमान सूर्य (वरेण्यः) अङ्गीकार करने योग्य जन और (गायत्री, छन्दः) गायत्री छन्द (इन्द्रियम्) मन को प्राप्त होता है और जैसे (त्र्यविः) शरीर, इन्द्रिय, आत्मा इन तीनों की रक्षा करने और (गौः) स्तुति प्रशंसा करने हारा जन (वयः) जीवन को धारण करता है, वैसे विद्वान् लोग (दधुः) धारण करें ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वान् लोग विद्या से सब के आत्माओं को प्रकाशित और सब को जितेन्द्रिय करके पुरुषों को दीर्घ आयुवाले करें ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

(समिद्धः) सम्यक्प्रदीप्तः (अग्निः) वह्निः (समिधा) सम्यक्प्रकाशेन (सुसमिद्धः) सुष्ठु प्रकाशितः सूर्यः (वरेण्यः) वरणीयो जनः (गायत्री) (छन्दः) (इन्द्रियम्) मनः (त्र्यविः) त्रयाणां शरीरेन्द्रियात्मनामवीरक्षणं क्षणं यस्मात्सः (गौः) स्तोता (वयः) जीवनम् (दधुः) दधीरन् ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यथा समिद्धोऽग्निः समिधा सुसमिद्धो वरेण्यो गायत्री छन्दश्चेन्द्रियं प्राप्नोति यथा च त्र्यविर्गौर्वयो दधाति तथा विद्वांसो दधुः ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्वांसो विद्यया सर्वेषामात्मनः प्रकाश्य सर्वान् जितेन्द्रियान् कृत्वा दीर्घायुषः सम्पादयन्तु ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वान लोकांनी ज्ञानाने सर्व आत्म्यांना प्रकाशित करावे आणि सर्वांना जितेंद्रिय व दीर्घजीवी बनवावे.